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ऐसे रहेंगे हमेशा फिट और जवान: खाएं-जई, बाजरा और मक्काअपनाएं ये टिप्स

 
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Health: अगर हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना है तो इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। ताकी बीमारियों से बचा रहा जा सके। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश्ड एक स्टडी के मुताबिक, हमारी डाइट और न्यूट्रीशन तय करते हैं कि इन माइक्रोब्स का स्वास्थ्य कैसा रहने वाला है। उम्र के साथ भी इनके स्वास्थ्य में कई बदलाव आते हैं। जो इम्यून सिस्टम को मजबूत या कमजोर बनाते हैं।

उम्र के साथ इम्यूनिटी बढ़ाने की जरुरत

इंसान का इम्यून सिस्टम उम्र के साथ बदलता रहता है। असल में जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारे शरीर की रक्षा कर रही फौज भी बूढ़ी होती है। जब बीमारियां और संक्रमण आक्रमण करते हैं तो बूढ़ी फौज के लिए उन्हें हरा पाना मुश्किल हो जाता है। ये सिपाही बेहद छोटे होते हैं, इतने कि इन्हें आंखें नहीं देख सकती हैं। इसके लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत होती है।

गट माइक्रोबायोम क्या है

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में माइक्रोऑर्गेनिज्म की पूरी आबादी रहती है, इसे गट माइक्रोबायोम कहते हैं। जब भी हमारे शरीर में बाहरी आक्रमण होता है, यानी कोई बीमारी या संक्रमण हमला करता है, तो ये माइक्रोब्स उस दौरान शरीर के भीतरी कामकाज को स्थिर बनाए रखने का काम करते हैं। माइक्रोबायोम होम्योस्टेसिस की मदद करते हैं। होम्योस्टेसिस हमारे शरीर के भीतर स्टेबल चल रही वह फिजिकल और केमिकल कंडीशन है जिससे सब कुछ सही सलामत चल रहा होता है।

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सब्जियां खाना फायदेमंद

हमारे खाने में जितनी ज्यादा सब्जियां होंगी, ये माइक्रोब्स की पूरी दुनिया के लिए सेहतमंद साबित होंगी। इसमें कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा हरी पत्तेदार सब्जियां हों। इसके अलावा लहसुन प्याज में मिलने वाले प्रीबायोटिक्स भी गट माइक्रोब्स के लिए बेहद फायदेमंद हैं।

फिजिकल एक्टिविटी भी जरूरी

इनकी अच्छी हेल्थ के लिए फिजिकल एक्टिविटी भी जरूरी है। इससे आंतों में सूजन कम होती है। इससे अच्छे माइक्रोब्स की कुनबा भी बढ़ता है। गट माइक्रोबायोम और इम्यून सिस्टम एक साथ मिलकर काम करते हैं। गट माइक्रोब्स किसी खतरे को डिटेक्ट करके संकेत भेजते हैं, जिसे इम्यूनिटी सेंसर डिटेक्ट करता है। यह काम हमारे पेट के अंदर लगातार चल रहा होता है।

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उम्र के साथ बिगड़ता है बैक्टीरिया का संतुलन

उम्र बढ़ने का साथ हमारे गट बैक्टीरिया का संतुलन बिड़ जाता है। इससे माइक्रोबियल डिस्बिओसिस पैदा होती है, जिसका मतलब है कि आंत में फायदेमंद बैक्टीरिया की संख्या में कमी आाना। ज्यादातर लोग अपनी जवानी में अपने स्वाद के लिए कुछ भी खा रहे होते हैं। ये फास्टफूड और जंकफूड पेट में जाकर इन माइक्रोब्स को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ये कमजोर पड़ने लगते हैं, शरीर में खतरनाक ऑर्गेनिज्म दिखने पर जल्दी पहचान नहीं पाते हैं, न ही इम्यून सिस्टम को मेसेज भेज पाते हैं।

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आंतों में बढ़ जाती है सूजन

हमारी आंतों में रह रहे माइक्रोब्स दुश्मनों से लड़ने के लिए समय-समय पर सूजन पैदा करते हैं, फिर इसे सामान्य भी करते हैं। लेकिन उम्र बढ़ने पर इनकी सूजन को कम करने वाली शक्ति कमजोर पड़ जाती है। जिससे सूजन बनी रह जाती है। जो कई बीमरियों की वजह बनती है।

इस सूजन के पीछे स्ट्रेस, फिजिकल एक्टिविटी न करना, खराब खाना और कोई बीमारी भी हो सकती है। ये सारी कंडीशन मिलकर बीमारियों के लिए लूप होल तैयार कर देती हैं। जिससे वे हमला करके शरीर पर कब्जा जमा सकें।

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सके लिए सबसे पहले रास्ता है मेडिटेरेनियन डायट

रिसर्च में देखा गया कि जब लोगों के भोजन से रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स, सैचुरेटेड फैट, डेयरी प्रोडक्ट्स और रेड मीट हटा दिया गया को माइक्रो ऑर्गेनिज्म की सेहत सुधरने लगी। मेडिटेरेनियन डायट में पिज्जा, बर्गर जैसे जंकफूड की मनाही है। इस डायट में अपने खाने के लिए लोग पेड़-पौधों पर आश्रित होते हैं। रिसर्च में यह भी देखने को मिला है कि मेडिटेरेनियन डायट फॉलो करने से टाइप-2 डायबिटीज के खतरे को कम किया जा सकता है।

खाएं प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स

गट माइक्रोब्स की अच्छी सेहत के लिए प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स खाने भी फायदेमंद हैं। प्रोबायोटिक्स यानी दही, ढोकले, कैफिर मिल्क आदि। प्रीबायोटिक्स के लिए मोटे अनाज जैसे, जई, बाजरा, मक्का आदि का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा बादाम, सेब, केला में भी प्रीबायोटिस मिलते हैं।