चूंकि मैं बॉस हूं…मेरे पास अधिकार है..लीडर पैदा होते हैं या अपनी कोशिशों से बनते हैं? जानें क्वालिटीज
Leader: लीडर सिर्फ राजनीति में नहीं होते। घर-परिवार, सोसाइटी, ऑफिस और फ्रेंड सर्किल में भी लीडर की जरूरत होती है। लीडर का अर्थ है कोई भी वह व्यक्ति, जो लीड कर सके, कमान संभाल सके, राह दिखा सके, प्रेरित कर सके। जो एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सके।
क्या आप में है लीडरशिप क्वालिटीज ?
अपना बिजनेस शुरू करने जा रहे हैं, दफ्तर में प्रमोशन होने वाला है या किसी नए ऑफिस में आप बॉस बनकर जा रहे हैं तो आपके भीतर ये लीडरशिप क्वालिटीज होनी चाहिए। ये गुण आपको एक सफल और पॉपुलर लीडर बना सकते हैं।
लीडर पैदा होते हैं या अपनी कोशिशों से बनते हैं?
दुनिया जीतने वाला सिकंदर हो या लोगों के मन पर राज करने वाले महात्मा गांधी, ऐसे लीडर बनते हैं या फिर जन्मजात गुण के साथ पैदा होते हैं, इस बारे में साइकोलॉजी में दो धारणाएं हैं।20वीं सदी की शुरुआत में विकसित और लोकप्रिय हुई ‘ग्रेट मैन थ्योरी’ कहती है कि लीडरशिप क्वालिटी जन्मजात होती है और दुनिया के महान नेता इन गुणों के साथ ही पैदा हुए। ‘ग्रेट मैन थ्योरी’ सिर्फ एक हायपोथीसिस थी, न कि रिसर्च और स्टडी के आधार पर प्रूव हुआ फैक्ट।
लीडरशिप की ‘बिहेवियरिस्ट थ्योरी’ का समर्थन
लेकिन लीडरशिप क्वालिटी पर हुई साइकोलॉजी की आधुनिक रिसर्च कहती हैं कि अपनी कोशिशों से कोई भी शख्स अच्छा लीडर बन सकता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे चंद्रगुप्त पर चाणक्य की नजर पड़ी और उनके मार्गदर्शन में बालक चंद्रगुप्त मगध का यशस्वी सम्राट बन गया।
यह सोच लीडरशिप की ‘बिहेवियरिस्ट थ्योरी’ का समर्थन करती है। मौजूदा वक्त में ज्यादातर मनोवैज्ञानिक इसी सोच को सही ठहराते और मानते हैं कि अपनी कोशिशों से कोई सामान्य शख्स भी प्रभावशाली लीडर में बदल सकता है।
लीडर का मतलब सिर्फ करिश्माई शख्सियत नहीं
लीडर या नेता का नाम आते ही मंच, माला और माइक से सुशोभित, समर्थकों का अभिवादन स्वीकार रहे किसी राजनेता या मीटिंग में अपने एम्प्लॉइज पर प्रोडक्शन बढ़ाने का दबाव बना रहे कड़क बिजनेस टाइकून की तस्वीर जेहन में उभर आती है। लेकिन सेंटर फॉर क्रिएटिव लीडरशिप की एक रिपोर्ट बताती है कि लीडर की पहचान सिर्फ उसके करिश्माई व्यक्तित्व, ताकत या उसके प्रति लोगों की दीवानगी भर से नहीं होती। यानी अच्छा लीडर बनने के लिए मजबूती या करिश्माई पर्सनैलिटी से ज्यादा जरूरी टीम की उम्मीदों को समझने और सबको साथ लेकर चलने की कला है।
अथॉरिटी नहीं, दिल से करें नेतृत्व तो बनेंगे अच्छे लीडर
जाने-माने लीडरशिप एक्सपर्ट मार्क क्रोवले ने एक किताब लिखी, जिसका नाम है- ‘लीड फ्रॉम द हार्ट।’ अपनी इस किताब में मार्क अथॉरिटी या ताकत की जगह दिल से नेतृत्व करने की सलाह देते हैं।
‘चूंकि मैं बॉस हूं और मेरे पास अधिकार है, इसलिए तुम्हें मेरी बात माननी ही होगी।’ मार्क इसे अथॉरिटेटिव लीडरशिप बताते हैं। जबकि अगर टीम लीडर एंप्लॉई की जगह खुद को रखकर देखें और समझने की कोशिश करें कि वे क्या चाहते हैं तो उन्हें खुद-ब-खुद समझ आएगा कि उनकी टीम के लिए सबसे बेहतर क्या है। ऐसी स्थिति में उनका नेतृत्व सिर्फ अपनी ताकत या अथॉरिटी दिखाने की कवायद नहीं होगी, बल्कि पूरी टीम आगे बढ़ेगी। इसके लिए कंपैशनेट यानी दूसरों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत होती है।
अच्छे लीडर की इतनी अहमियत क्यों है?
कई बार दफ्तरों में एम्प्लॉइज के बीच बॉस की चुगलियों के दौर में ऐसी बातें आती हैं कि सारा काम तो हम लोग ही करते हैं, बॉस तो खाली नुक्स निकालते रहते हैं। उनके पास तो और कोई काम ही नहीं है। अपना गुस्सा निकालने और मन हल्का करने के लिए ऐसी बातें ठीक हो सकती हैं, लेकिन इनका वास्तविकता से कोई नाता नहीं है। क्योंकि Gallup का एक सर्वे बताता है कि कोई भी कर्मचारी कितना अच्छा या बुरा काम करेगा, यह 70% इस बात पर निर्भर करता है कि उसका नेतृत्व करने वाला कैसा है। वह उससे किस तरह काम लेता है।