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  प्लास्टिक के साइड इफेक्ट्स: दिल दिमाग के लिए खतरनाक! जानें कैसे बीमारियों को दवात दे रहें हम ?

 
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Plastic: प्लास्टिक हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते है कि प्लास्टिक कैसे हमारे दिमाग और शरीर के दूसरे अंगों तक पहुंच रहा है, और इसका इस्तेमाल कितना घातक बनता जा रहा है।

ऐसे हुआ प्लास्टिक का अविष्कार

साल 1855 में एलेक्जेंडर पार्क्स ने पार्केसीन की खोज की। ये दुनिया का पहला प्लास्टिक था। हालांकि तब इसका नाम प्लास्टिक नहीं था। इसके बाद साल 1907 में लियो बैकलैंड ने बेकलाइट बनाया और इसे प्लास्टिक का नाम दिया। बनाते हुए बैकलैंड ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये प्लास्टिक इस तरह हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाएगा कि जैसे हवा और पानी। और इतना ही नहीं, ये उस हवा और पानी को प्रदूषित भी करने लगेगा।

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वक्त के साथ धीरे-धीरे प्लास्टिक की ढेरों वेरायटीज आ गईं और दुनिया जहान की हर तरह की चीज के प्रोडक्शन में इसका इस्तेमाल होने लगा। अब तो जहां देखिए, हर चीज में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है।

हमारे मोबाइल फोन, लैपटॉप से लेकर खाने-पीने के बर्तनों तक सबकुछ में प्लास्टिक है। यहां तक कि चिप्स, कुरकुरे, नमकीन और बिस्किट भी प्लास्टिक के रैपर में ही आते हैं। रोजाना के इस्तेमाल की ज्यादातर चीजें प्लास्टिक से बनी हैं। यही प्लास्टिक हमारे भोजन, पानी और हवा में शामिल हो गया है। इतनी करीबी तो दोस्त के साथ भी नहीं अच्छी होती, जबकि प्लास्टिक तो हमारा दुश्मन है।

हाल ही में इनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक के छोटे कण, जिन्हें हम माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं, ये हमारी दिमागी सेहत को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको के रिसर्चर्स ने यह स्टडी की है। उनकी प्रेस रिलीज में बताया गया है कि प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों जैसे लिवर, किडनी और ब्रेन तक पहुंचकर उन्हें डैमेज कर रहे हैं। लंबे वक्त में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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ब्रेन तक पहुंचा प्लास्टिक

कानपुर के न्यूरोफिजिशियन डॉ. अनिमेष गुप्ता के मुताबिक ये प्लास्टिक पहले तो हमारे हमारी स्किन, सांस और खाने के जरिए शरीर के अंदर जाता है। फिर ये हमारे खून में शामिल होकर धीरे-धीरे सभी ऑर्गन्स में जमा हो जाता है।

वह कहते हैं कि हमारे ऑर्गन्स में जमा हो रहे ये प्लास्टिक पार्टिकल्स बहुत छोटे हैं। इनका आकार 20 माइक्रोमीटर से भी छोटा है। तभी ये तमाम बैरियर्स पार करके लिवर, किडनी और ब्रेन जैसे अंगों तक पहुंच रहे हैं।

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हमारे ऑर्गन्स में कैसे पहुंचा प्लास्टिक

हमारे आज के रहन-सहन में प्लास्टिक हर जगह व्याप्त है। जिस ओर नजर फेरिये, बस प्लास्टिक ही प्लास्टिक है। जो सबसे खतरनाक प्लास्टिक है, वह इतने छोटे टुकड़ों में तब्दील हो चुका है कि आंखों से दिखाई भी नहीं देता। यह हवा, पानी और खाने में हर जगह शामिल है। यही हमारे सभी बॉडी ऑर्गन्स तक पहुंच रहा है।

ऑर्गन्स के सेफ्टी जाल को भी भेद रहा है

किसी भी देश के सबसे महत्वपूर्ण लोगों को हाई लेवल सिक्योरिटी मिलती है। इसी तरह प्रकृति ने भी हमारे सभी बॉडी ऑर्गन्स को झिल्ली के अंदर सुरक्षित रखा है। ये झिल्लियां इन ऑर्गन्स को हर तरह के खतरे से बचाती हैं। हमारी आंखों को धोखा दे चुके प्लास्टिक के ये बेहद महीन कण इन झिल्लियों को भी पार कर जाते हैं और बॉडी ऑर्गन्स तक पहुंच जाते हैं।

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प्लास्टिक से न्यूरोडेवलपमेंटल या न्यूरोडीजेनेरेटिव जोखिम

इन प्लास्टिक पार्टिकल्स का हमारे मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इनके चलते न्यूरोडेवलपमेंटल या न्यूरोडीजेनेरेटिव जोखिम हो सकते हैं। इससे दिमाग के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है और पार्किन्संस जैसी बीमारियों का खतरा हो सकता है।

लिवर पर भी पड़ता है असर

द लैंसेट में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी से डाइजेस्टिव सिस्टम में कमजोरी और लिवर के सेलुलर रिएक्शन में गड़बड़ी आ सकती है। इसके अलावा गट हेल्थ भी खराब हो सकती है।

किडनी भी खतरे में

जर्नल ऑफ नैनोबायोटेक्नोलॉजी में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक हाल के वर्षों में, पॉलीस्टाइरीन माइक्रोप्लास्टिक्स हमारी किडनी में सूजन का बड़ा कारण है और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस भी बढ़ा रहा है। यह हेल्थ कंडीशन अगर लंबे समय तक बनी रहे तो क्रॉनिक किडनी डिजीज होने की आशंका बढ़ जाती है, जो बाद में किडनी फेल्योर का कारण बन सकती है।

​​​​​​​फेफड़ों को भी होता नुकसान

प्लास्टिक के जो टुकड़े सांस में घुलकर हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं, ये उन्हें बुरी तरह बीमार कर रहे हैं। साइंस डायरेक्ट जर्नल में पब्लिश स्टडी के मुताबिक ज्यादातर लोगों के फेफड़ों में प्लास्टिक के छोटे कण मौजूद हैं।

बढ़ती है कैंसर की आशंका

द लैंसेट में पब्लिश स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक की प्रकृति न्यूरोटॉक्सिक होती है। इसका मतलब है कि ये हमारी सेल्स के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें मार भी सकते हैं। इससे कैंसर की आशंका भी बढ़ सकती है।

हमारा ईजाद हमें ही कर रहा बर्बाद

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल इंसान 43 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक बना रहा है। जिसमें दो तिहाई प्लास्टिक ऐसा है, जो जल्द ही कचरा बन जाता है। लेकिन कचरा बनकर यह नष्ट नहीं होता।

प्लास्टिक का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि यह नष्ट नहीं होता। हजारों सालों तक प्रकृति में पड़ा रहता है और इनवायरमेंट को नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक मिट्‌टी में मिलकर फसलों और पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है। पानी में जाकर मछलियों और जलीय जीवों की सेहत खराब करता है। कुल मिलाकर हमारा ईजाद हमें ही बर्बाद कर रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक अगर यही रफ्तार रही तो साल 2060 तक प्लास्टिक का प्रोडक्शन तीन गुना तक बढ़ सकता है और इसी के साथ बढ़ेगा प्लास्टिक कचरा भी।

कैसे कम कर सकते हैं प्लास्टिक कचरा

नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर कई ऑर्गनाइजेशन प्लास्टिक के प्रोडक्शन और इस्तेमाल को कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन जब तक इसका असर होगा, तब तक हमें भारी नुकसान हो चुका होगा। इसलिए हम अपने स्तर पर भी कुछ काम कर सकते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं।