फूड पॉइजनिंग का शिकार हुए राहुल गांधी: जानें कैसे रखें खुद का ख्याल? जानलेवा हो सकती है असावधानी!
60 करोड़ लोग फूडबोर्न बीमारियों का शिकार
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक रैली में बताया कि राहुल गांधी को फूड पॉइजनिंग हो गई है। इसलिए वह रैलियों में नहीं आ पा रहे हैं। असल में फूड पॉइजनिंग फूडबोर्न डिजीज का एक स्वरूप है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया में 60 करोड़ लोग फूडबोर्न बीमारियों का शिकार होते हैं और इनमें करीब 4 लाख 20 हजार लोगों की मौत हो जाती है, जिसमें से 30% की उम्र 5 वर्ष से कम होती है।
फूड पॉइजनिंग होने पर क्या करें?
आमतौर पर फूड पॉइजनिंग लाइफ थ्रेटनिंग नहीं है। इससे असुविधा हो सकती है, हॉस्पिटल जाना पड़ सकता है, कई दिनों तक दवाइयां खानी पड़ सकती हैं, लेकिन अगर समय रहते इसका पता चल जाए तो इससे जान को कोई खतरा नहीं है। बहुत से लोग इलाज के बिना भी कुछ ही दिनों में पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं। हालांकि गर्भवती महिलाओं, शिशुओं, बुजुर्गों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए यह जानलेवा भी हो सकती है।
हाल ही में दो बच्चों की मौत का कारण बनी फूड पॉइजनिंग
पिछले दिनों पटियाला में केक खाने से 10 साल की बच्ची की मौत का मामला सुर्खियों में रहा। उसे फूड पॉइजनिंग हुई थी। अब पटियाला में एक्सपायर्ड चॉकलेट खाने से एक डेढ़ साल की बच्ची की मौत हो गई है। बच्ची के परिजनों के मुताबिक चॉकलेट का टुकड़ा खाते ही बच्ची के मुंह से खून निकलने लगा और अस्पताल ले जाते ही बच्ची ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
फूड पॉइजनिंग क्या होती है?
यह एक फूडबोर्न बीमारी है, जिसे आमतौर पर फूड पॉइजनिंग कहते हैं। फूड पॉइजनिंग दूषित, खराब या विषाक्त भोजन खाने से हो सकती है। इसका सबसे आम लक्षण मतली, उल्टी और दस्त है।
यह साइलेंट डिजीज नहीं है। अगर किसी को फूड पॉइजनिंग हुई है तो कुछ-न-कुछ लक्षण जरूर दिखेंगे। लक्षण सीवियर या मामूली हो सकते हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि आपको किस चीज से फूड पॉइजनिंग हुई है और इंफेक्शन का स्तर (CRP) कितना है।
फूड पॉइजनिंग से किस तरह की स्थितियां बन सकती हैं, नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-
कितने दिन रह सकते हैं ये लक्षण?
सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक फूड पॉइजनिंग के लक्षण आधे घंटे से लेकर 8 हफ्ते तक बने रह सकते हैं। यह सबकुछ इंफेक्शन के कारण पर निर्भर करता है। आमतौर पर फूड पॉइजनिंग से बीमार हुए लोग अधिकतम 1 हफ्ते में स्वस्थ हो जाते हैं।
क्यों होती है फूड पॉइजनिंग?
ज्यादातर फूड पॉइजनिंग के मामलों में तीन कारण प्रमुख हैं:
बैक्टीरिया
परजीवी
वायरस
ये पैथोजेन्स ज्यादातर सभी फूड आइटम्स में पाए जाते हैं। लेकिन जब हम इन्हें आग की आंच में पकाते हैं तो ये पैथोजेन्स नष्ट हो जाते हैं। इसलिए आमतौर पर कच्ची चीजें ही फूड पॉइजनिंग का कारण बनती हैं।
अगर भोजन मल या उल्टी में मौजूद ऑर्गेनिज्म के संपर्क में आ जाए तो फूड पॉइजनिंग की आशंका बढ़ जाती है।
ये बीमार व्यक्ति के जरिए भी फैल सकते हैं। इसलिए अगर कोई बीमार व्यक्ति खाना पका या परोस रहा है तो जरूरी है कि वह खाना पकाने से पहले हाथ धुले।
मांस, अंडे और डेयरी प्रोडक्ट्स दूषित होते हैं। अगर इन्हें ठीक से पकाया न जाए तो इनसे भी फूड पॉइजनिंग हो सकती है।
प्रदूषित पानी भी बीमारी की वजह बन सकता है।
क्या है फूड पॉइजनिंग का इलाज?
अगर फूड पॉइजनिंग के लक्षण सामान्य हैं तो घर पर ही इसका इलाज किया जा सकता है। आइए कुछ तरीके देखते हैं, जिनसे फूड पॉइजनिंग के इलाज में मदद मिल सकती है:
हाइड्रेटेड बने रहें
फूड पॉइजनिंग होने पर हाइड्रेटेड रहना सबसे जरूरी है क्योंकि उल्टी या डायरिया होने पर शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो सकती है। इसके लिए नींबू का पानी और नारियल पानी बेस्ट ऑप्शन हैं क्योंकि इनमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट थकान से भी राहत दिला सकते हैं। डायरिया होने पर तुरंत इलेक्ट्रॉल या ओआरएस का घोल पिएं। अगर इलेक्ट्रॉल नहीं है तो पानी में चीनी और नमक मिलाकर पिएं। इस दौरान कैफीन या निकोटीन युक्त चीजें नहीं लेनी चाहिए। ये पेट में जलन का कारण बन सकती हैं।
भोजन एकदम हल्का जैसे पतली मूंग दाल की खिचड़ी ही खाएं।
घर में हमेशा मेट्रोजिल की टैबलेट रखें। दस्त लगने पर तुरंत एक मेट्रोजिल ले लें।
अगर लक्षण गंभीर हो रहे हैं तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
किनके लिए खतरा बन सकती है फूड पॉइजनिंग
कोई भी फूड पॉइजनिंग का शिकार हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार लगभग हर कोई जीवन में कम-से-कम एक बार फूड पॉइजनिंग का शिकार होता है।
फूड पॉइजनिंग से इन लोगों को है ज्यादा रिस्क:
कमजोर इम्यूनिटी वाले: कमजोर इम्यूनिटी या ऑटोइम्यून बीमारी से जूझ रहे लोगों में फूड पॉइजनिंग से संक्रमण और गंभीर लक्षणों का खतरा अधिक हो सकता है। गर्भवती महिलाओं को: गर्भवती महिलाओं को अधिक खतरा होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान उनका मेटाबॉलिज्म और सर्कुलेटरी सिस्टम कई बदलावों से गुजर रहा होता है। बुजुर्गों को: 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को भी फूड पॉइजनिंग होने का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि आमतौर पर इस उम्र तक आते-आते इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और संक्रामक जीवों के प्रति तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करता है।
छोटे बच्चों को: 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी अधिक जोखिम होता है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम वयस्कों की तरह विकसित नहीं हुआ होता। अगर उन्हें उल्टी और दस्त शुरू हो जाएं तो रिकवर करने में बहुत मुश्किल आती है।