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एक ऐसी बीमारी जिसमें बिना शराब पीए ही रहता है नशाजानें क्या है ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम?

 
auto brewery syndrome:

auto brewery syndrome:: ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में सभी लक्षण एक शराबी जैसे ही होते हैं। व्यक्ति को हरदम नशे का अहसास होता रहता है। फैसले लेने में परेशानी होती है, सब कुछ ब्लर सा दिखता है, सिर घूमता रहता है।

यह बीमारी किसे और क्यों होती है?

इंदौर के मेदांता सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. हरि प्रसाद यादव बताते हैं कि शराब बनाने के लिए कार्बोहाइड्रेट का इस्तेमाल होता है। कार्ब्स को फर्मेंट करके अल्कोहल में बदला जाता है। यह हेल्थ कंडीशन भी गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम है। इसमें हमारा शरीर कार्ब्स को फर्मेंट करके अल्कोहल में बदलने लगता है।

auto brewery syndrome:

पहले भी आते रहे हैं ऐसे मामले

करीब तीन साल पहले अमेरिकी महिला सारा लिफेबर के साथ यही हेल्थ कंडीशन थी। वह शराब नहीं पीती थीं, लेकिन हर वक्त नशे में रहतीं। डॉक्टर्स उन्हें किसी भी तरह की बीमारी होने से इनकार देते, उल्टे कहते कि आप शराब पीती हैं। उनके साथ यह कंडीशन 20 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। इसके 18 साल बाद यानी 38 साल की उम्र में पता चला कि वह ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोमसे जूझ रही हैं। उनकी हालत तब तक इतनी बिगड़ चुकी थी कि लिवर ट्रांसप्लांट की नौबत आ गई।

क्या है यह बीमारी, जो बिना शराब पिए नशे में रखती है

यह एक ऐसी हेल्थ कंडीशन है, जिसमें शरीर खुद ही यीस्ट एथेनॉल बनाने लगता है। यह एक तरह का अल्कोहल है। यह अल्कोहल ब्लड में मिलकर पूरे शरीर में पहुंच जाता है। यही कारण है कि ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम से जूझ रहा पेशेंट हर समय नशे में बना रहता है। और अगर वह शराब भी पीता हो तो महज एक-दो पैग में ही उसे पूरी बोतल के जितना नशा हो जाता है।

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किसे है सबसे अधिक खतरा

बच्चों और वयस्कों दोनों को ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम हो सकता है। इसके लक्षण भी सबमें एक जैसे ही दिखते हैं। आमतौर पर ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम शरीर की किसी दूसरी बीमारी के कारण, गट हेल्थ में डिसबैलेंस या संक्रमण के कारण होता है।

अगर हमारे गट माइक्रोबायोम में यीस्ट बहुत बढ़ जाएं तो इस रेयर हेल्थ कंडीशन का कारण बन सकते हैं। अगर कोई शॉर्ट बाउल सिंड्रोम से गुजर रहा है तो उसे ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम होने की अधिक आशंका होती है। चूंकि शॉर्ट बाउल सिंड्रोम छोटे बच्चों में अधिक होता है तो ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम होने की आशंका भी उनमें अधिक होती है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों को भी इस रेयर हेल्थ कंडीशन का जोखिम ज्यादा होता है।

गट में ज्यादा यीस्ट बनने के अलावा ये भी कारण हो सकते हैं-

खराब पोषण

एंटीबायोटिक दवाएं

इंफ्लेमेटरी बाउल सिंड्रोम

डायबिटीज

कमजोर इम्यूनिटी

कैसे होता है इसका इलाज

ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम का इलाज आमतौर पर एंटिफंगल दवाओं से किया जाता है। डॉक्टर भोजन में कार्बोहाइड्रेट कम करने की सलाह भी दे सकता है। अगर यह स्थिति किसी क्रोनिक डिजीज के कारण पैदा हुई है तो दोनों हेल्थ कंडीशंस का इलाज एक साथ किया जाता है।

इस दौरान इन चीजों के लिए हो सकती है मनाही:

चीनी

हाई कार्ब फूड्स

शराब

यूं तो ऑटो ब्रीवरी सिंड्रोम बहुत रेयर है, लेकिन इस बीमारी से हमारी जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। कभी ऐसी हेल्थ कंडीशन न बने, इसके लिए डेली डाइट में बदलाव की जरूरत है। कम-से-कम कार्बोहाइड्रेट वाला भोजन करना चाहिए। इससे पेट में फंगस संतुलित बना रहता है।

ये मीठे चीजें और सिंपल कार्ब्स खाने से बचें:

कॉर्न सिरप

व्हाइट ब्रेड

पास्ता

व्हाइट राइस

गेहूं का आटा

आलू के चिप्स

शरबत

फ्रूट जूस