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इस साल सामान्य रहेगा मानसून: शुरूआत में रहेगा अल नीनो का असर, जानें मौसम का पूरा अनुमान ?

 
मानसून

Monsoon: गर्मियों के बाद सभी को मॉनसून का इंतजार रहता है। चिलचिलाती गर्मी से निजात मॉनसून के आने के बाद ही मिलती है। ऐसे में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसी स्काईमेट ने मंगलवार को मानसून का अनुमान जाहिर किया। स्काईमेट के मुताबिक, 2024 में मानसून सामान्य रहेगा। एजेंसी ने मानसून सीजन के 102% (5% प्लस-माइनस मार्जिन) रहने की संभावना जाहिर की है।

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शुरुआत में अल-नीनो का असर रहेगा

जून से सितंबर तक चलने वाले 4 महीने के मानसून सीजन के लिए औसत (LPA) 868.6 मिमी है। स्काईमेट के मैनेजिंग डायरेक्टर जतिन सिंह ने कहा कि शुरुआत में अल-नीनो का असर रहेगा, पर दूसरे हाफ में इसकी भरपाई हो जाएगी। इस साल स्काईमेट ने दूसरी बार मानसून का पूर्वानुमान जारी किया है। इससे पहले 12 जनवरी 2024 को भी स्काई मेट ने मानसून के सामान्य रहने की संभावना जाहिर की थी।

कहीं ज्यादा और कहीं कम बारिश  होगी

स्काईमेट के मुताबिक, अलनीनो काफी तेजी से ला नीना में बदल रहा है। यह अच्छा संकेत है। अलनीनो का ला नीना में बदलना अच्छे मानसून का कारण बनता रहा है। हालांकि, मानसून की शुरुआत में अल नीनो के बचे कुचे असर के कारण मानसून पर थोड़ा असर पड़ सकता है, लेकिन दूसरे चरण में मानसून भरपाई कर लेगा। अल नीना से ला नीना में परिवर्तन के चलते सीजन की शुरुआत में देरी हो सकती है। सीजन के दौरान अलग-अलग और बारिश की संभावना है। यानी कहीं ज्यादा और कहीं कम बारिश हो सकती है।

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क्या होता है अल नीनो?

अल नीनो एक वेदर ट्रेंड है, जो हर कुछ साल में एक बार होता है। इसमें ईस्ट पैसिफिक ओशन में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है। WMO ने बताया कि इस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया था।

ब्रिटानिका के मुताबिक अल-नीनो की पहली रिकॉर्डेड घटना साल 1525 में घटी थी। इसके अलावा 1600 ईस्वी के आसपास पेरू के मछुआरों ने महसूस किया कि समुद्री तट पर असामान्य रूप से पानी गर्म हो रहा है। बाद में रिसर्चर्स ने बताया था कि ऐसा अल-नीनो की वजह से हुआ था।

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पिछले 65 सालों में 14 बार अल-नीनो प्रशांत महासागर में सक्रिय हुआ है। इनमें 9 बार भारत में बड़े स्तर पर सूखा पड़ा। वहीं, 5 बार सूखा तो पड़ा, लेकिन इसका असर हल्का रहा।

मानसून होता क्या है?

एक क्षेत्र में चलने वाली हवाओं की दिशा में मौसमी परिवर्तन को मानसून कहते हैं। इस वजह से कई बार बारिश भी होती है या कई बार गर्म हवाएं भी चलती हैं। भारत के संदर्भ में देखा जाए तो हिंद महासागर और अरब सागर से ये हवाएं भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आती हैं। ये हवाएं ठंडे से गर्म क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हुए अपने साथ पानी वाले बादल भी लाती हैं जो भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भी बारिश करवाते हैं। भारत में जून से सितंबर तक मानसूनी हवाएं चलती रहती हैं।