टाइम मैगजीन की टॉप 100 हस्तियों में शामिल साक्षी मलिक: लड़ी यौन उत्पीड़न की लंबी लड़ाई
मैगजीन में नाम पाने वाली हरियाणा की इकलौती पहलवान साक्षी मलिक है। मैगजीन ने इनका नाम शामिल करते हुए कहा कि साक्षी ने कुश्ती में यौन शोषण के खिलाफ बृजभूषण सिंह के खिलाफ एक मुहिम छेड़ी है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन की भी साक्षी ने अग्रणी भूमिका निभाई है।
इतना ही नहीं, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हुए अपनी कुश्ती से भी संन्यास ले लिया है। वहीं, इस सम्मान को पाने पर साक्षी मलिक ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा है- वर्ष 2024 की 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल होने पर मुझे गर्व है। वर्ष 2024 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल होना अनूठा अनुभव है। यह ओलिंपिक पदक जीतने के समान खुशी है।
3-4 साल की उम्र में पहुंची थी अखाड़ा
हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गांव में कुश्ती खेल नहीं, एक जुनून है, एक इमोशन है। यही मोखरा साक्षी मलिक का पैतृक गांव है। साक्षी का जन्म 3 सितंबर, 1992 को हुआ था। गांव में एक 60 साल पुराना शंकर अखाड़ा है, जिसकी शुरुआत मदिया पहलवान ने 1963 में किया था। 89 वर्षीय मदिया गांव में गुरु जी (कोच) के नाम से जाने जाते हैं।
मदिया पहलवान की देखरेख में शंकर अखाड़े से भारत के कुछ सर्वश्रेष्ठ पहलवानों निकले है। दिलचस्प यह है कि इस अखाड़े से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले करीब ग्यारह जवान कारगिल युद्ध में देश के लिए लड़े थे। साक्षी जब करीब 3-4 साल की थीं, तो अन्य बच्चों के साथ शंकर अखाड़े में जाती थी। वह शायद कुश्ती से उनका पहला जुड़ाव था।
12 साल की उम्र से कुश्ती सीखना शुरू किया
साक्षी ने 12 साल की उम्र में कुश्ती सीखने की शुरुआत की। हालांकि, उनकी मां अपनी बेटी को रेसलर नहीं बनाना चाहती थीं। मां ने कहा- लड़कियां बाउट करते वक्त छोटी छोटी कास्टयूम पहनती थीं। इसलिए रेसलिंग मुझे पसंद नहीं आई। मैंने साक्षी को बहुत समझाने की कोशिश की कि जो पहलवान लड़कियां होती हैं उनकी शादी नहीं होती।
साक्षी के पापा सुखबीर मलिक डीटीसी में बस कंडक्टर हैं। साक्षी ने बचपन में कबड्डी और क्रिकेट खेलने की कोशिश की। लेकिन कुश्ती में लगातार जीत मिलने की वजह से वही उनका पसंदीदा खेल बन गया। हालांकि तब उनके माता-पिता ने यह सोचा भी नहीं था कि उनकी बेटी एक दिन ओलंपिक पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पहलवान बनेंगी।
हवाई जहाज में उड़ना था सपना
बचपन में हवाई जहाज में उड़ने की लालसा से लेकर खेल के सबसे बड़े मंच ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने तक सफर किसी परी कथा की तरह है। साक्षी ने एक साक्षात्कार में कहा था, मुझे नहीं पता था कि ओलिंपिक क्या होता है। मैं हवाई जहाज में बैठने के लिए एक खिलाड़ी बनना चाहती थी। मुझे पता था कि जो भारत की तरफ से खेलता है, वह विमान में चढ़ सकता है और उड़ सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि साक्षी के बड़े भाई का नाम क्रिकेट आइकन सचिन तेंदुलकर के नाम पर रखा गया था। सचिन, साक्षी से दो साल बड़े हैं। वह अक्सर साक्षी को क्रिकेट खेलने के लिए कहते थे, लेकिन वह ज्यादातर समय मना कर देती और आसमान में ऊंची उड़ान भर रहे हवाई जहाजों को देखती रहती थीं। उनके सपने को पूरा करने के लिए परिवार ने हमेशा समर्थन किया।