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 हिसार का राजनीतिक इतिहास, क्या बाप दादा की सियासी विरासत को बरकरार रख पाएगी आज की पीढ़ी ?

 
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हिसार लोकसभा सीट कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही बड़ी सियासी लड़ाई का रण बन चुकी है। लेकिन वर्तमान में जंग का सियासी मैदान बनी हिसार लोकसभा सीट का इतिहास भी बेहद अहम है। अब जरा इस सीट के सियासी इतिहास को समझते है।hisar loksabha

बाप दादा की विरासत को बचाना है..

चौटाला परिवार और चौधरी बीरेंद्र सिंह का परिवार दोनों ही हरियाणा की राजनीति में बड़े जाट चेहरों में आते है। इन दोनों ही परिवारों का हिसार गढ़ रहा है। हिसार की जनता दोनों ही परिवारों को अपना समर्थन देती आई है। बाप दादा की विरासत को संभालना अब चौधरी बृजेंद्र सिंह और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। ऐसे में दोनों ही नेताओं की कोशिश इस सीट पर अपना वर्चस्व कायम रखने की है। फिर चाहे दांव कोई भी लगाना पड़े।

चौटाला परिवार और चौधरी बीरेंद्र सिंह की सियासी लड़ाई

बृजेंद्र सिंह के पिता बीरेंद्र सिंह 1977 में कांग्रेस के टिकट पर उचाना कलां से चुनाव लड़े थे और बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद वह 1982 में फिर विधायक बने और प्रदेश में सहकारिता और डेयरी विकास मंत्री बने थे। 1984 में उन्होंने हिसार लोकसभा सीट से ओमप्रकाश चौटाला को हराया था। 1991 में वह फिर से विधायक बने और राजस्व व योजना मंत्री बने। अपने पांचवें कार्यकाल में वह 2005 में विधायक बने थे। उन्होंने वित्त, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय संभाला था।

29 अगस्त 2014 को थामा था बीजेपी का दामन

2010 में उनको राज्यसभा सदस्य चुना गया। 2013 में बीरेंद्र सिंह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री बने। 28 अगस्त 2014 को उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह 29 अगस्त 2014 को भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने 2016 में बीरेंद्र सिंह को राज्यसभा सदस्य बनाया। इस दौरान वह केंद्रीय इस्पात मंत्री बने। 2019 में उनके बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद बने। इसके बाद बीरेंद्र सिंह ने राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया था।