कांग्रेस में 42 साल, मोदी सरकार में मंत्री, जानें ‘चौधरी बीरेंद्र सिंह’ कैसे बने हरियाणा की राजनीति के ‘ट्रेजेड़ी किंग’ ?
हरियाणा के सभी बड़े राजनेताओं, चाहे वह इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला हों या भूपेंद्र सिंह हुड्डा हों या फिर स्वर्गीय ताऊ देवीलाल, स्व. बंसीलाल या स्व. भजनलाल का परिवार हो, हर किसी से बीरेंद्र सिंह के अच्छे संबंध रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब हरियाणा के CM थे, तब भी बीरेंद्र सिंह उन्हें भूप्पी कहकर ही बुलाते थे।
BJP नेतृत्व से कहा- गांधी परिवार के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोलूंगा
बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में शुरू से गांधी परिवार के प्रति समर्पित रहे। उनकी गिनती पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के बेहद करीबियों में होती थी। वर्ष 2014 में BJP ज्वाइन करने के बावजूद गांधी परिवार के प्रति उनका लगाव कभी कम नहीं हुआ।
खुद बीरेंद्र सिंह ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि BJP ज्वाइन करते समय ही उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से साफ कह दिया था कि वह गांधी परिवार के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोलेंगे। बीरेंद्र सिंह का स्व. राजीव गांधी के प्रति लगाव इस बात से भी समझा जा सकता है कि जींद के उचाना में बने उनके राजीव गांधी कॉलेज के अंदर मुख्य दफ्तर से लेकर लाइब्रेरी तक, हर जगह आज भी राजीव गांधी के फोटो लगे हैं।
आजकल कपड़ों की तरह राजनीतिक पार्टियां बदलने वाले लोग दल बदलते ही उसका झंडा-डंडा उतार देते हैं लेकिन बीरेंद्र सिंह ने अपने कॉलेज में लगी राजीव गांधी की मूर्ति को कभी नहीं हटाया।
जनता पार्टी की आंधी में जीतने वाले इकलौते कांग्रेसी नेता
बीरेंद्र सिंह को हरियाणा की बांगर बेल्ट का सबसे बड़ा राजनेता कहा जाता है। इस इलाके में उनके परिवार का अच्छा-खासा प्रभाव है। इमरजेंसी का दौर खत्म होने के बाद, वर्ष 1977 में जब समूचे उत्तर भारत में जनता पार्टी की आंधी चल रही थी, तब बीरेंद्र सिंह ने जींद जिले की उचाना सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। तब जीत दर्ज करने वाले वह कांग्रेस के इकलौते नेता थे।
वह बीरेंद्र सिंह का पहला ही विधानसभा चुनाव था। उन्होंने उस समय लोकदल के टिकट पर मैदान में उतरे रणबीर चहल बड़ौदा को हराया था। उस समय हरियाणा में कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था।
हुड्डा को 1991 में अपनी गारंटी पर सीधे राजीव गांधी से दिलवाया टिकट
बीरेंद्र सिंह बेशक खुद कभी हरियाणा का CM नहीं बन पाए लेकिन कई नेताओं को उनके शुरुआती करियर में आगे बढ़ाने में उनका अहम रोल रहा। ऐसा ही एक किस्सा भूपेंद्र सिंह हुड्डा से जुड़ा है।
दरअसल वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव के समय बीरेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे और भूपेंद्र सिंह हुड्डा पार्टी के उभरते हुए नेता थे। बीरेंद्र सिंह ने सीधे राजीव गांधी से पैरवी करके हुड्डा को रोहतक लोकसभा सीट से टिकट दिलवाया।
बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस हाईकमान के सामने यहां तक कह दिया था कि रोहतक से हुड्डा को जितवाने की गारंटी वह खुद लेते है। वो हुड्डा के सियासी करियर का पहला ही बड़ा इलेक्शन था और वह साढ़े 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीते।
ट्रेजडी किंग के खिताब के पीछे की कहानी
बीरेंद्र सिंह के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए वर्ष 2004 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया। बीरेंद्र सिंह का CM बनना तय था लेकिन उसी समय राजीव गांधी की हत्या हो गई। इसके साथ ही बीरेंद्र सिंह के सितारे गर्दिश में चले गए और कांग्रेस हाईकमान ने 23 जुलाई 1991 को उनकी जगह भजनलाल को CM बना दिया।
बीरेंद्र सिंह खुद अपने इंटरव्यू में कई बार बता चुके हैं कि उनका 1991 में केंद्रीय मंत्री बनना तय हो गया था। उनके पास पार्टी का ऑफिशियली इन्विटेशन भी आ गया कि कल सुबह मंत्रिपद की शपथ लेनी है। उन्होंने इसके लिए नया सूट सिलवा लिया लेकिन सुबह पता चला कि मंत्रियों की लिस्ट से उनका नाम कट चुका है।
ऐन मौके पर होने वाले ऐसे घटनाक्रमों के चलते ही बीरेंद्र सिंह को हरियाणा की राजनीति का ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा।
पांच बार MLA और 3 बार सांसद रहे, केंद्र-राज्य में मंत्री बने
बीरेंद्र सिंह वर्ष 1977 के चुनाव में पहली बार जींद जिले की उचाना सीट से विधायक चुने गए। वह 1982, 1991, 1996 और 2005 में इसी सीट से विधायक चुने गए। वर्ष 2006 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली हरियाणा सरकार में वह वित्तमंत्री बने। इससे पहले 1982 से 1984 तक भजनलाल सरकार में वह कोऑपरेटिव मंत्री और 1991 से 1993 तक भजनलाल सरकार में राजस्व मंत्री रहे। यूथ कांग्रेस और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के अलावा वह कई राज्यों के प्रभारी भी रहे।
1984 में वह हिसार लोकसभा सीट पर ओमप्रकाश चौटाला को हराकर पहली बार सांसद बने। 2010 में कांग्रेस ने बीरेंद्र सिंह को पहली बार राज्यसभा भेजा। उनका कार्यकाल 2016 तक था लेकिन 2014 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा देकर भाजपा जॉइन कर ली। 2016 में वह फिर राज्यसभा सांसद बने और 2019 में बेटे बृजेंद्र सिंह के हिसार से लोकसभा सांसद बन जाने पर उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।
बीरेंद्र सिंह हरियाणा BJP के इकलौते ऐसे नेता रहे जो WFI के पूर्व अध्यक्ष और BJP सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन करने वाले पहलवानों के समर्थन में जंतर-मंतर पहुंचे।
बीरेंद्र सिंह हरियाणा BJP के इकलौते ऐसे नेता रहे जो WFI के पूर्व अध्यक्ष और BJP सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन करने वाले पहलवानों के समर्थन में जंतर-मंतर पहुंचे।
कहते थे- बेईमानी करूंगा तो लोग कहेंगे छोटूराम के नाती ने ये क्या कर डाला
सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह ने हमेशा साफ-सुथरी राजनीति की। 50 साल से ज्यादा लंबे सियासी करियर के बावजूद उन पर कभी भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। बीरेंद्र सिंह खुद कहते थे- मैं अगर राजनीति में कभी कोई गलत काम करता तो लोग कहते कि देखो छोटूराम के नाती ने ये क्या कर दिया। मैंने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि लोग कभी भी मेरी वजह से मेरे परिवार के बारे में कुछ गलत न बोलें।