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 तुम रोने वाले बच्चे हो'अगर आप भी अपने बच्चों से बोलते है ऐसी भाषा तो जरुर पढ़ें ये खबर

 

paranting: इंग्लैंड की ससेक्स यूनिवर्सिटी में बच्चों के मनोविज्ञान पर हुई एक रिसर्च बताती है कि पेरेंटिंग के दौरान मां-बाप का बच्चों की भावनाओं से उलट भाषा या धमकी भरा रवैया बच्चे के भविष्य को खतरनाक रूप से प्रभावित कर सकता है।

बच्चे की पर्सनैलिटी और उसके भविष्य पर बहुत गहरा असर

जाने-माने चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट चिकी मूरमैन की एक किताब है- पेरेंट टॉक।इस किताब में मूरमैन लिखते हैं कि मां-बाप अपने बच्चे से किस तरह बात करते हैं, इसका बच्चे की पर्सनैलिटी और उसके भविष्य पर बहुत गहरा असर पड़ता है। बच्चों के जीवन को संवारने या उसे बिगाड़ने में पेरेंट्स की भाषा बहुत अहम भूमिका निभाती है। मूरमैन पेरेंटिग में सही भाषा के इस्तेमाल को सबसे जरूरी बताते हैं।

इसी तरह सेल्फ मोटिवेशन वेबसाइट हैक स्पिरिटकी एक रिपोर्ट उन वाक्यों की एक लिस्ट बताती है, जो आमतौर पर पेरेंट्स इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसा करना बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास के लिए ठीक नहीं है।

पेरेंटिंग में इतनी अहम क्यों है भाषा

अपनी किताब में चिकी मूरमैन लिखते हैं कि बच्चों के लिए पेरेंट्स और उनका बिहेवियर आदर्श होता है। कम उम्र में बच्चे अपने पिता को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स और मां को सबसे अच्छी महिला मानते हैं। इनके बारे में बच्चों के मन में आदर्श सोच होती है।

ऐसे में अगर मां-बाप बच्चों को किसी चीज के लिए कहते या रोकते हैं तो इसी से बच्चे उस चीज के अच्छे या बुरे होने की सीख लेते हैं। अगर कोई मां अपने बच्चे से यह कहे कि तुरंत रोना बंद कर दोतो भले ही बच्चा रोना बंद न करे, लेकिन मन-ही-मन वह जरूर सोचेगा कि रोना गंदी बात है।

ऐसी स्थिति में वह आगे से अपनी भावनाओं को जाहिर कर पाने या रो पाने में कठिनाई महसूस करेगा, वह अंदर-ही-अंदर घुटने लगेगा। यहां अनजाने में मां की भाषा बच्चे के मनोविज्ञान को काफी गहराई से प्रभावित कर जाती है।

तुम ठीक होकी जगह बच्चों से पूछें उनकी प्रॉब्लम

हैक स्पिरिट की एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के उदास या परेशान दिखने पर तुम ठीक तो हो, तुम्हें ये क्या हो गया है, तुम्हारी हरकत बदली-बदली सी क्यों हैजैसे सवाल उनकी परेशानी बढ़ा सकते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों के मन में ये सोच आती है कि अपनी भावनाओं को दिखाना गलत है।

चाइल्ड साइकोलॉजी कहती है कि बच्चों को परेशान देखकर सीधे ठीक या खराब के नतीजे पर पहुंचने से पहले उनकी फीलिंग्स को एक्नॉलेज यानी स्वीकार करना जरूरी है। अगर बच्चा परेशान है या रो रहा है तो सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि बच्चे का रोना यूं ही नहीं है। उसकी कोई वजह है।

मां-बाप इन वजहों को जानने की कोशिश करें और बच्चे से उसकी परेशानियों के बारे में पूछें तो आगे भी वह उनके सामने अपनी भावनाओं को आसानी से जाहिर कर पाएगा। एक बार मां-बाप बच्चे की फीलिंग्स, उसकी पसंद-नापंसद समझ लें तो उनके भविष्य को दिशा देना आसान हो सकता है।