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 रोटियां और चावल मतलब सेहत की थाली, 'सिडेंटरी लाइफ स्टाइल' देती है बीमारियों को न्योता

 

 Life style: आधुनिक समय का बदलाव हमारे खाने पीने रहने जीने के हर तरीके पर प्रभाव डाल रहा है। अब हम ढेर सारा कार्ब खाने के बाद न लंबा पैदल चलते हैं, न खेतों में काम करते हैं। बस ऑफिस में कुर्सी पर बैठकर दिन भर कंप्यूटर में काम करते है।

क्या होती है सिडेंटरी लाइफ स्टाइल ?

आज की हमारी थाली में रोटी-चावल की मात्रा ज्यादा और सब्जी-सलाद की बहुत कम होगी। अधिकांश भारतीय परिवारों का भोजन ऐसा ही है, चार रोटी और थोड़ी सी सब्जी। अब ये खाना खाकर आप फिर कुर्सी पर बैठकर घंटों काम करते रहेंगे। विज्ञान की भाषा में इसे सिडेंटरी लाइफ स्टाइल कहते हैं यानी लंबे समय तक एक ही जगह बैठे रहना। जीवन में ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी का न होना।

रोटियां और चावल मतलब मेहनत की थाली

भारत में हर घर, होटल, रेस्टोरेंट की थाली लगभग एक जैसी होती है। उसमें ढेर सारा कार्ब्स होता है, थोड़ा सा प्रोटीन और उससे भी कम फाइबर्स होते हैं। इसका मतलब हुआ कि थाली का ज्यादातर हिस्सा रोटी और चावल से भरा होता है, जबकि सब्जी और दाल बहुत कम मात्रा में होते हैं। इन थालियों से सलाद और फल तो अक्सर गायब ही रहते हैं।

खाने का तरीका कर रहा है बीमार

असल में हम थाली को जिस अनुपात में सजाकर खाए जा रहे हैं, वह तरीका बहुत पुराना हो चुका है। यह थाली तब लाभदायक थी, जब हमारे पूर्वज पूरे दिन खेतों में या जंगलों में मेहनत करते थे। अब जबकि हम सिडेंटरी लाइफस्टाइल जी रहे हैं, जिसमें फिजिकल एक्टिविटी न के बराबर है, लोग दिनभर एक ही कुर्सी पर बैठकर काम करते हैं, फिर कार या मेट्रो में बैठकर घर लौट जाते हैं, उनके लिए यह थाली नुकसानदायक है। यह धीरे-धीरे बीमार कर रही है।