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55 साल के हुए मनोज वाजपेयी: साझा किए अनकहे किस्के, जानें कैसे बिहार से पहुंचे दिल्ली, मुंबई?

 

Manoj bajpayee: बिहार के छोटे से गांव में जन्मे मनोज ने पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का देखा था। इसके लिए उन्हें शुरुआत से ही बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। NSD के लिए दिल्ली तक पहुंचने के लिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया था। उन्होंने पेरेंट्स से कहा था कि वे IAS की तैयारी के लिए दिल्ली जा रहे हैं।

कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए पैसा इकट्ठा करते थे

मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को बेलवा, बिहार में हुआ था। 5 भाई-बहन में वे दूसरे नंबर पर थे। मनोज के पिता किसान थे। ऐसे में परिवार की आर्थिक स्थिति खास अच्छी नहीं थी। मनोज को बचपन से कोल्ड ड्रिंक और कबाब बहुत पंसद थे, लेकिन इतने पैसे नहीं होते थे कि वे ये सब खा-पी सकें।

कोल्ड्र ड्रिंक की दुकान या कबाब की दुकान से गुजरते वक्त वे बस इन चीजों को देखकर रह जाते थे। मन में सोचते थे कि जब थोड़े पैसे इकट्ठे हो जाएंगे, तब वे इन दोनों चीजों का लुत्फ उठाएंगे। फिर जब कभी पैसे होते तो वे सबसे पहले कोल्ड्र ड्रिंक पीते और बचे हुए पैसों से कबाब खाते थे।

पिता की ख्वाहिश थी कि डॉक्टर बनें, 7 की उम्र में हॉस्टल भेजे गए

पिता किसान थे। नतीजतन, मनोज को भी खेत जोतने से लेकर रोपाई तक का काम आता था। हालांकि, पिता ने कभी नहीं चाहा कि उनके बच्चे खेती-किसानी करें। कमाई कम थी, लेकिन उन्होंने सभी बच्चों को अच्छे से पढ़ाया।

पिता चाहते थे कि मनोज डॉक्टर बनें। उनकी इस इच्छा के पीछे का कारण यह था कि वे खुद डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन 5 लाख रुपए की कमी ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया। यही वजह रही कि 7 साल के मनोज को हॉस्टल भेज दिया गया।

मनोज ने द अनुपम खेर शो में इस बात का खुलासा किया था कि इस बात के लिए उन्हें पेरेंट्स से अभी भी शिकायत है। उन्होंने कहा था- मैं आज भी पेरेंट्स से कहता हूं कि मुझे इतनी कम उम्र में हॉस्टल नहीं भेजना चाहिए था। वहां पर सारे बड़े बच्चे मुझे बहुत तंग करते थे।

5वीं क्लास में NSD में जाने का फैसला कर लिया था

पिता ने तो सोच रखा था कि बेटा डॉक्टर बनेगा, लेकिन मनोज के मन में एक्टिंग के अलावा कभी कुछ रहा ही नहीं। परिवार में किसी का ताल्लुक फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था, लेकिन मनोज के पेरेंट्स को फिल्में देखने का शौक बहुत था। बचपन में पेरेंट्स के साथ मनोज ने भी जय संतोषी मांजैसी फिल्में 6-7 बार देखी थीं। बढ़ती उम्र के साथ मनोज का एक्टिंग के लिए जुनून बढ़ता चला गया, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि आगे चलकर करना क्या है। 5वीं क्लास के आसपास उन्होंने राज बब्बर, ओमपुरी और नसीरुद्दीन शाह का इंटरव्यू पढ़ा। इन तीनों ने लाइफ जर्नी वाले इस इंटरव्यू में NSD के बारे में जिक्र किया था। इसे पढ़कर मनोज को पता चला कि ग्रेजुएशन के बाद वे एक्टिंग की पढ़ाई के लिए NSD जा सकते हैं। उसी वक्त उन्होंने फैसला कर लिया कि आगे चलकर उन्हें NSD में ही एक्टिंग की पढ़ाई करनी है।

घरवालों से IAS बनने का झूठ बोलकर दिल्ली गए थे

12वीं पास करने के बाद मनोज दिल्ली चले गए, लेकिन यहां वे एक झूठ बोलकर पहुंचे थे। मनोज के पेरेंट्स इस सच के साथ उन्हें दिल्ली नहीं भेजते कि वे एक्टर बनने जा रहे हैं। ऐसे में उन्होंने पिता से कहा- मैं डॉक्टर तो नहीं बन सकता, लेकिन IAS जरूर बनूंगा और इसकी तैयारी के लिए दिल्ली जाना है।

ये सुन परिवार वालों ने उन्हें दिल्ली भेज दिया। 2-3 साल दिल्ली में बिताने के बाद मनोज ने सोचा कि वे घरवालों को सच्चाई बता दें। उन्होंने पिता को खत लिख कर बता दिया कि वे एक्टर बनने दिल्ली आए हैं।

हालांकि, जो जवाब पिता ने मनोज को दिया, वो काफी मजेदार था। उन्होंने लिखा- प्रिय पुत्र मनोज। मैं तुम्हारा ही पिता हूं। मुझे पता है कि तुम एक्टर बनने ही गए हो।

मनोज ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया और साइड में स्ट्रीट थिएटर करने लगे। ग्रेजुएशन पूरा हो जाने के बाद उन्होंने जब पहली बार NSD का एग्जाम दिया तो फेल हो गए।

इससे वे मायूस हो गए थे। रो-रोकर उनका बुरा हाल हो गया। यहां तक कि उन्होंने जीने की उम्मीद भी खो दी थी। उनकी हालत देख दोस्तों को डर था कि वे अपने साथ कुछ गलत कर लेंगे। इस कारण कोई ना कोई दोस्त उनके पास मौजूद जरूर रहता था। इस गम से उबरने के बाद उन्होंने दोबारा NSD का एग्जाम दिया, लेकिन फिर से फेल हो गए। इसी वक्त मनोज बैरी जॉन के एक्टिंग स्कूल से जुड़ गए। जहां वो एक्टिंग सीखने के साथ 1500 रुपए फीस के साथ बच्चों को एक्टिंग सिखाते भी थे।

बैरी जॉन से एक्टिंग के गुर सीखने के बाद उन्होंने तीसरी बार NSD का एग्जाम दिया था। इस बार वहां के प्रोफेसर का कहना था- हम आपको बतौर स्टूडेंट तो नहीं ले सकते हैं, लेकिन आप चाहें तो यहां बतौर टीचर काम कर सकते हैं।