टिकट कटने पर ‘बंसीलाल परिवार’ का बयान: जानें किरण चौधरी और श्रुति चौधरी ने क्या कहा ?
राव दान सिंह की मदद के सवाल पर श्रुति ने कहा कि मदद करेंगे। चाहते हैं यहां से सीट निकले। ये सिर्फ चुनाव नहीं इमोशनल इश्यूज भी हैं। ये हल्के की लड़ाई का सवाल है। पिता और दादा ने भी ऐसे मोड़ देखे। राजनीतिक रूप से उनको भी रोका गया। ऐसे मोड़ पर संघर्ष करना होता है। कार्यकर्ता निराश ना हों सीट बदलने के सवाल पर श्रुति ने कहा कि अब तो 20 दिन बचे हैं। हमने हल्के के विकास के लिए लड़ाई लड़ी। हम पार्टी के लोग हैं। पार्टी के साथ हैं। ये केवल राजनीतिक क्षेत्र नहीं है, इस इलाके से पिता दादा की यादें जुड़ी हैं। परिवार के रूप में प्यार मिला है। मैं हैसियत और क्षमता के मुताबिक लोगों के लिए काम करूंगी।
किरण चौधरी बेटी श्रुति के लिए भिवानी से कांग्रेस की टिकट मांग रही थीं। इन्हीं के गुट के रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुमारी सैलजा भी श्रुति की टिकट के लिए लगातार हाईकमान से पैरवी कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी राव दान सिंह को उम्मीदवार बना दिया।
2 महीने पहले शुरू हुई थी भाजपा में जाने की चर्चा
करीब 2 महीने पहले बेटी श्रुति चौधरी की लोकसभा टिकट कटने की अटकलों के बीच किरण चौधरी की भाजपा जॉइन करने की चर्चा शुरू हुई थी। हालांकि, उस दौरान किरण चौधरी ने साफ किया था कि वह कांग्रेस में ही रहेंगी, भाजपा में जाने की चर्चा मात्र अफवाह है। वह पार्टी में रहकर ही कांग्रेस को और मजबूत करेंगी।
किरण चौधरी के कंधों पर राजनीतिक विरासत
श्रुति चौधरी को टिकट नहीं मिलने के बाद बंसीलाल परिवार हरियाणा की सियासत में 31 साल बाद लोकसभा चुनाव से आउट हो गया है। किरण चौधरी तोशाम विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक हैं। बंसीलाल परिवार की राजनीतिक विरासत को जिंदा रखने का सारा भार किरण चौधरी के कंधों पर है।
2004 से लगातार विधायक है किरण
किरण चौधरी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल के बेटे स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह की पत्नी हैं। सुरेंद्र सिंह हरियाणा में मंत्री रहे। खुद किरण चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के दोनों कार्यकाल में मंत्री रहीं। किरण चौधरी वर्ष 2005 में अपने पति सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद चुनावी राजनीति में उतरीं और लगातार 4 बार से भिवानी की तोशाम सीट से विधायक हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में श्रुति चौधरी को मिली हार के बाद किरण चौधरी और तत्कालीन सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा में दूरियां बढ़ने लगी थीं।